Thursday, October 29, 2015

Jivan yatra-4

 धरती पर यदि कोई व्यक्ति निरंतर आगे बढ़ते रहे  निश्चित है की वह अनंत की ओर नहीं बढ़ रहा है। जिस बिंदु से यात्रा  प्रारम्भ हुआ उसी बिंदु पर यात्रा समाप्त हो जाएगी इसमें कोई संदेह नहीं। इसका अर्थ  यह नहीं है की यात्रा न हो। लेकिन स्वीकारना होगा की हमारी  गति एक रेखा पर नहीं एक वृत पर  है।  जिसे क्षुद्र रूपसे शून्य कहते हैं , और बृहत् रूपसे पूर्ण कहते हैं। इस वृत को परिक्रमा करना ही संपूर्ण है l
                         आधुनिक मनुष्य जब विकाश के मार्ग पर चलना शुरु  किया,अनुसंधित्सु बनगया ,तव आवश्यकताओं को भरने के लिए क्षुधा पिपासा जैसी प्रवृतियों  के  साथ साथ जिज्ञासा भी मनुष्य का एक अंतर्निहित प्रवृति हो गया l  क्षुधा पिपासादी प्रवृतियों को शांत कर मनुष्य अन्य प्राणी जैसा सो नहीं गया l चिंतन किया ,कल्पना को वास्तव रूप मैं देखने की प्रयास किया ,चाहे वे सब कल्पनाओं को वास्तव रूप मैं  परिवर्तन करने के लिए मनुष्य के पास आज के जैसा बिज्ञानागार नहीं था l 
            मनुष्य अग्नि को पहचाना ,उसे प्रयोग करना सिखा ,जल मिट्टी आदि तत्वों को जाना ,कृषि करना ,एक स्थान पर रहना,भाव का आदान प्रदान करना सीखा, क्रमशः समृधि के पथ पर बढ़ने लगा जो यात्रा अवतक चल रहा है ,चलता भी रहेगा .निरंतर प्रयास के फल स्वरुप मनुष्य को ऐसी कुछ उपलब्धियां हासिल हुई जो मानव कल्याण के लिए अक्षय उर्जा को धारण किया .कुछ ऐसा भी मिला जो सर्वनाश का कारण भी वना .

Sunday, October 25, 2015

Parivartan-3

                                    आज के समय मनुष्य की आवश्यकता अनंत है। सारी  कामनाओं को पूरा करने के लिए मनुष्य क्या क्या नहीं किया ?क्या क्या नहीं कर रहा है ?अभी भी करने के लिए बहुत कुछ बाकी है। ऐसे अनंत जिज्ञासायें होंगे जो अवतक मानव मस्तिष्क मैं स्थानित नहीं हुआ होगा ,उन्हें भी करना पड़ेगा। 

Saturday, October 24, 2015

Chintan-2

          कोई भी   कार्य क्रियान्वित  होने से पहले वह  मस्तिस्क मैं सूक्ष्म रूप से स्वरुप को प्राप्त करता है। स्वाभाविक  क्रियाएँ  स्वतः हो   जाते हैं , परन्तु  मनुष्य अपने  सार्वभौमिक तथा   सामग्रीक  विकाश के    लिए जो कार्य करता है ,वे  सव अनेक चिंतन का मूर्त  रूप है।  प्राक  काल से मनुष्य अपने खाद्य, वस्त्र , निवसादि  मौलिक आवस्यकताओं की पूर्ति के  लिए  कितने  चिंतन नहीं किया होगा ?  कितने वार निष्फल हुआ होगा , अनेक  सफलताओं को प्राप्त किया होगा।  जिसका फल आज हम सव भोग कर रहे हैं, युगों तक भोग करते भी रहेंगे। --------- क्रमशः -------- 

Saturday, October 17, 2015

Shubharambh-1

या  देवी सर्व भूतेषु मातृ रुपेण  संस्थिता 
नमः तस्यै नमः तस्यै नमः तस्यै नमो नमः ll 
"मा- मातृभूमि ओर  मातृभाषा कि ममता जिसके हृदय पर जन्म नंही  हुआ, उसे यदि ज्ञानिओं  के बीच में गिना जाय तो अज्ञानिओं का   स्थान कहाँ  होगा ? "

आइए चलेंगे संस्कृत की ऑर ------------------------  
'उदेश्यम्  अनुदिश्य मंदोपि न प्रवर्तते' -इस कथनसे  यह प्रमाणित होता है की इस जगत मैं ऐसा  कोई कार्य  नहीं जिसके पिछे   कोई न कोई  उदेश्य न हो. यदिवा  स्पस्ट रूपसे प्रतीत नंही होता है  तो अप्रत्यक्ष्य रूपसे कार्य का कारण अवश्य छिपकर  रहता है। जब छोटे से छोटे प्राणिओं से लेकर  उद्भिदों के विकार   कार्यों में  उदेश्य अन्तर्निहित है तो  मनुष्य जैसे बुद्धितत्व समन्वित प्राणि  के  द्वारा   किया  गया कार्यों मैं कारणशून्यता  नंही  हो सकता है. क्रमशः।।।।।

Friday, October 16, 2015

Well Come

WELL COME TO THE NEW WORLD OF SANSKRIT