Saturday, October 17, 2015

Shubharambh-1

या  देवी सर्व भूतेषु मातृ रुपेण  संस्थिता 
नमः तस्यै नमः तस्यै नमः तस्यै नमो नमः ll 
"मा- मातृभूमि ओर  मातृभाषा कि ममता जिसके हृदय पर जन्म नंही  हुआ, उसे यदि ज्ञानिओं  के बीच में गिना जाय तो अज्ञानिओं का   स्थान कहाँ  होगा ? "

आइए चलेंगे संस्कृत की ऑर ------------------------  
'उदेश्यम्  अनुदिश्य मंदोपि न प्रवर्तते' -इस कथनसे  यह प्रमाणित होता है की इस जगत मैं ऐसा  कोई कार्य  नहीं जिसके पिछे   कोई न कोई  उदेश्य न हो. यदिवा  स्पस्ट रूपसे प्रतीत नंही होता है  तो अप्रत्यक्ष्य रूपसे कार्य का कारण अवश्य छिपकर  रहता है। जब छोटे से छोटे प्राणिओं से लेकर  उद्भिदों के विकार   कार्यों में  उदेश्य अन्तर्निहित है तो  मनुष्य जैसे बुद्धितत्व समन्वित प्राणि  के  द्वारा   किया  गया कार्यों मैं कारणशून्यता  नंही  हो सकता है. क्रमशः।।।।।

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