Thursday, December 24, 2015

ତ୍ରିବେଣୀ ସଂଗମ

ସଖୀ!
ତୁମରୀ ପ୍ରିତି ମୋତେ ମୋହିଲାରେ 
କାମ କଳୁଶ ଚିତୁ ଦହିଲାରେ ସଖୀ ..(ଘୋଷା )
ଡାକିବି ବୋଲି ସଖୀ ଭାବକୁ ମନେ ରଖି 
ଭାବୁଁ ପ୍ରମାଦ ସ୍ରୋତ ବହିଲାରେ     ସଖୀ ...୧ 
ଚକ୍ଷୁ ଦୁଇ ତୁମ ଅତି ଅନୁପମ 
ନଥାଏ ତହିଁରେ କଟାକ୍ଷ ବିଭ୍ରମ 
ହେ ମୃଗନୟନୀ ତୁମ୍ଭ ନେତ୍ର ବେନି  
ଜ୍ଞାନୀ ସାର୍ଥକତା ଲଭିଲାରେ          ସଖୀ ...୨ 
ସତ ଗୋ ମିତଣୀ  ତୁମ୍ଭ ବେନି ପାଣି 
କର୍ମୀ କର ପ୍ରାୟ ପ୍ରିୟା କର ଜିଣି 
ନହେଉ ମସୃଣ କରେ ରୋମାଂଚନ
ସେ ଶ୍ୟାମାଂଗେ ମନ ରହିଲାରେ     ସଖୀ ...୩ .
ପାଇଛି ହୃଦୟ ଭକ୍ତି ଭାବେ ଥୟ 
ସେ ଭକ୍ତିର ନାହିଁ କେବେହେଁ ବିଲୟ 
ସେ ନୟନ କର ହୃଦୟ ନିକର 
ତ୍ରିବେଣୀ ସଂଗମ ରଚିଲାରେ          ସଖୀ ....୪ 
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Wednesday, December 23, 2015

संस्कृतम् संगणकीयम्

                           "संस्कृतं संगणकीयम् "-एतत् तु वैज्ञानिकतया विवेचनीयम्। मनसि प्रश्नः संजायते -किं वास्तविकतया संस्कृतं संगणकीयम् न वा ? अस्य प्रश्नस्य उत्तरं न केवलं संस्कृतज्ञः अथवा संगणक-विशारदः दातुं शक्नोति अपितु यः उभयोः विद्ययोः पारंगतः सः एव दातुं सक्षमः भविष्यति।
         
               

            इदानीं संगणकीये युगे सङ्गणकस्य आवश्यकता सर्वेषु क्षेत्रेषु वर्तते। भारते संपूर्ण -विश्वस्य एक -षष्ठांश- जनाः निवसन्ति । एतेषां कृते सङ्गणकस्य महति आवश्यकता अस्ति। परन्तु एतदर्थं आङ्ग्ल -भाषायाः ज्ञानं अनस्विकार्यम्।   
                यस्मिन देशे संगणकाय भाषा आदौ प्रस्तुता ,तत्र आङ्ग्ल-भाषायाः का आवश्यकता ?  "दिव्यज्ञानम् "इति शीर्षके मया लिखितं यत् -विज्ञान -माध्यमेन दिव्य-ज्ञानस्य विश्लेषणं सर्वथा  प्रासङ्गिकम्। अस्माकं देशे दिव्यद्रष्टारः आसन्, तेषु  महर्षिणा पाणिनिना लिखिता -संस्कृत-भाषा एव भारतीय-वैज्ञानिकैः संगणकिया भाषा रूपेण रुपान्तरिता भविष्यति अत्र नास्ति संदेहः। अतः संस्कृत-भाषायाः वैज्ञानिक-विश्लेषणं अवश्यं करणीयम् । 

Friday, December 18, 2015

विकास की ओर -8

                    समय का मांग है विकास ,नारा भी है विकास ,और विकास की ओर हम सब तेजी से बढ़ रहे हैं । इस मार्ग मैं चलने वाले और दिशा निर्देश करनेवाले यदि पथभ्रष्ट नहीं होंगे तो अछे दिन ज्यादा दूर नहीं है।
                जीवन यात्रा शीर्षक पर हम लिखे हैं की हमारी गति एक रेखा पर नहीं एक वृत्त पर है ।

Thursday, December 17, 2015

ଯାଚ୍ନା ଦୈନ୍ୟ ଦୁଷଣମ୍

दीना दिनमुखै..............मनस्वी पुमान् 
ଦିନ ହୀନ ଶୁସ୍କ କ୍ଷୁଧାର୍ତ୍ତ ବାଳକ
                     ଆକର୍ଷେ ଯା ଜୀର୍ଣାମ୍ବର
ପର ଦୁଖେ ଦୁଖୀ ଦୟା ପ୍ରତି ମୁର୍ତ୍ତୀ 
                        ଗୃହିଣୀ ନଥିବ ଯାର
ମାଗିଲେ ଦେବକୀ ନଦେବା ଭୟରେ                                ଭଗ୍ନାକ୍ଷର କଣ୍ଠ ସ୍ବରେ
ସ୍ବ ଜଠରାର୍ଥେ କି ମନସ୍ବୀ ପୁରୁଷ 
                 ଦେହୀ ବୋଲି କହି ପାରେ ।।୨୧ 
अभिमत महामान ............विडम्बनाम् 
ଅଭିଳାଷ ଅଭିମାନ ଅହମିକା ଭାଂଗି ଦେବାରେ ଯେ ପଟୁ
ଗୁଣ ଗ୍ରାମ ରୁପ କମଳ ବନକୁ ଚନ୍ଦ୍ରଯୋତ୍ସନା ପ୍ରୟ କଟୁ
ବିପୁଳ ବିଲସ ଲଜ୍ଜା ରୁପ ଲତା ଛେଦନେ ଯେ କୁଠାରିକା
ବିଡମ୍ବିତ କାରେ ଦୁଃ ଖେ ପୁରଣୀ ୟ ଜଠର ପିଠରୀ ଏକା ।।୨୨