जीवन यात्रा शीर्षक पर हम लिखे हैं की हमारी गति एक रेखा पर नहीं एक वृत्त पर है ।
यदि यह उक्ति को हम स्वीकार करेंगे की हमारी गति एक वृत्त पर है, तो चलते चलते वेदोक्त विद्याएँ हमारे मार्ग पर पुनःउपलब्ध हो जायेंगे। तव हम रास्ता भटक गये ऐसा नहीं सोचेंगे, क्योंकी हमारे यात्रा उसी दिशा मैं तय हैं ।
यदि यह उक्ति को हम स्वीकार करेंगे की हमारी गति एक वृत्त पर है, तो चलते चलते वेदोक्त विद्याएँ हमारे मार्ग पर पुनःउपलब्ध हो जायेंगे। तव हम रास्ता भटक गये ऐसा नहीं सोचेंगे, क्योंकी हमारे यात्रा उसी दिशा मैं तय हैं ।
"वेदों को पढ़ना और पढ़ाना हर मनुष्य का परम धर्म है "महर्षि दयानंद ने इस बात पर प्रमुखता से प्राधान्य दिया। केवल धर्मशास्त्र के रूप में वेदों को देखा जाना सही नहीं है। वेद तो जानकारियों का खजाना है ,वेद तो ज्ञान का भंडार है। इन्हें गणित ,विज्ञानं ,अदि सकल विद्याओं के आधार स्वरुप देखना होगा, तव जाकर विज्ञान के मार्ग पर दिव्यज्ञान का दर्शन होगा। सच मैं इस से बड़ा उपलब्धि मनुष्य के लिए और क्या हो सकता है ।
विकास के मार्ग पर दौड़ते हुए मनुष्य को जब- " how to live and how to make a living " का तरीका समझ मैं आ जाएगा, तव उसे विकसित कहा जायेगा। केवल भौतिक विकास से मानव समाज विकसित नहीं हो सकता है ,आध्यात्मिक विकास होने पर ही सर्वांगीण उन्नति संभव है ।
क्रमशः .................
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