Saturday, November 7, 2015

ज्ञानगंगा -6

                     मनुष्य तो जिज्ञासु है I क्षुधा खाद्य से और प्यास पानी से शांत होते हैं I परन्तु जिज्ञासा ज्ञानपान करने से शांत न होकर बलवती होती है I यदि जिज्ञासा ज्ञान पान  करने से समाप्त हो जाती है ,तो ज्ञान का पथ रुद्ध हो जाता है I इसलिए ज्ञान रूप समुद्र से  सूक्ष्म बालूका कणों को संग्रह करते हुए यदि जीवन समाप्त हो जाए , तो उसे  सार्थक जीवन कहा जाता है I
वैसी ही सार्थकता को प्राप्त किए थे हमारे भारतीय मुनि ऋषियों ने I ज्ञान रूपी गंगा की प्रखर प्रवाह निरंतर हिमालय रूप महर्षियों से निकलकर वेद  रूप समुद्र से मिलते चले I 
                        'जानना ' संस्कृत में इसका मूलधातु है  " विद्" I विद् धातु से घञ्  प्रत्यय होकर वेद बना I विद् -वेत्ति -वेद -विद्या इसी क्रम से विस्तृति को प्राप्त किया I वेद का अर्थ जानकारियाँ ,अर्थात् मुनि ऋषियों के निरंतर प्रयास प्रसूत शाश्वत ज्ञानों के भंडार I
                  मैं तो यही सोच रहा हूँ की मनुष्य किसीभी कार्य को करने से पहले अतीत से अनुभूति वर्तमान के परिस्थिति और भविष्यत का परिणति को अवश्य विचार करता है I इस आधार पर किया गया कार्य में प्रायः सफलता अधिक होती है I 
            पिता का अनुभव पुत्र का कार्याधार हो जाता है I पुत्र को और आगे चल जाने में सहायक होता है I पिता से पुत्र ,पुत्र से प्रपौत्र  तक ज्ञानानुभव क्रमशः लेखन अथवा श्रवण माध्यम से प्रसारित हो जाता है I यही प्रक्रिया ही पाश्चात्य ज्ञान का अद्यावधि अभिवृद्धि का कारण है I आज कल पाश्चात्य से प्राच्य की ओर  ज्ञान की ज्योति प्रवाह होने लगी I सूर्य कदापी पश्चिम से उदय नहीं हुआ तो आलोक की गति विपरीत कैसे हो सकता है ? यह तो निश्चित है की प्राच्य जब ज्ञानालोक में आलोकित होता है , पाश्चात्य तव अज्ञानान्धकार में डूबा रहता है I विपरीत गति में चलने वाला आलोक केवल दर्पण का प्रतिफलन मात्र I अर्थात् पाश्चात्य सभ्यता से मिलता हुआ ज्ञान हमारे पैतृक ज्ञान का प्रतिफलन ही है I क्या इसमें कोई संदेह है ? 
        वेद को अपौरुषेय कहागया I वेद किसी व्यक्ति के द्वारा नहीं बनाया गया I अर्थात् ज्ञान किसी व्यक्ति विशेष से उत्पन्न नहीं होता है I न कोई यंत्र से बनाया भी जा सकता है I यह तो शाश्वत है , अदृश्य ,शून्य में भाषमान ईश्वरीय तत्व I ज्ञानेन्द्रियों से समर्थ व्यक्ति का तपस्या और साधना से यह प्राप्त होता है I "विन्दु से सिन्धु" के न्याय से महात्माओं के द्वारा प्राप्त ,आहृत ,तथा संगृहित ज्ञान के भण्डारण का विशालतम रूप ही वेद है I वेद शव्द का सरल अर्थ है - "जानकारियों का खजाना ".यह अनेक साधकों के पुण्य फल ,जो अनंत समय पर्यंत भोज्य है I         
                                      
                                                                          क्रमशः..................            

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